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होली का वैज्ञानिक महत्व

नमस्कार दोस्तों, हमारा आर्यावर्त की इस ज्ञानवर्धक लेख में आप सभी का स्वागत है, इस लेख में आप जानेगे होली का रह्समय विज्ञान |



तो आईये प्रारंभ करते है |

होली मानाने के वैज्ञानिक कारण




हमेशा से हमे होली के पीछे हिरन्यकश्यप और प्रहलाद की कहानी बतायी गयी | परन्तु क्या हमने कभी होली मनाने के पीछे के वैज्ञानिक कारणों के बारे में सोचा? तो दोस्तों आज हम आप लोगो को बताएँगे होली का रहस्यमय विज्ञान, होली का त्यौहार मौज मस्ती, मेल मिलाप और सामाजिक सद्भावना का त्यौहार है | सनातन धर्म में हर त्यौहार को मानाने के पीछे कई वैज्ञानिक कारण होते है, जो न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि मानवीय सेहत के लिए भी गुणकारी है | वैज्ञानिको का भी मानना है की हमारे ऋषि मुनियों ने बहुत ही उचित समय पर होली का त्यौहार मानाने की शुरुआत की | होली के त्यौहार की मस्ती ही इतनी अधिक होती है की लोग इसके वैज्ञानिक कारणों से अनजान रहते है |

होली मानाने का उचित समय


होली का त्यौहार साल में एक ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण लोग आलसी हो जाते है| होली के त्यौहार से शिशिर ऋतू की समाप्ति होती है तथा वसंत ऋतू का आगमन होता है| प्राकृतिक दृष्टि से भी शिशिर ऋतू का अंत होता है और वसंत ऋतू का प्रारंभ होता है| ठन्डे मौसम का गर्म रूप अख्तियार करने के कारण शरीर का थकान और सुस्ती महसूस करना प्राक्रतिक है | शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए लोग न केवल जोर से गाते है बल्कि बोलते भी थोडा जोर से है| हमारे ऋषि मुनियों ने अपने ज्ञान से मौसम में होने वाले बुरे प्रभावों को कम करने के लिए ही इन सब त्योहारों की शरुआत की थी |


होली के पीछे छिपा आयुर्वेद


आयुर्वेद के अनुसार दो ऋतुओ के संगम काल में मानव शरीर रोगग्रस्त हो जाता है| आयुर्वेद के अनुसार ही शीत के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है, और वसंत ऋतू में कफ के निकलने की क्रिया में शरीर में कफ दोष पैदा होता है | जिसके कारण सांस की विभिन बिमारिय जैसे सर्दी खांसी और गंभीर बीमारियों में चेचक जैसे रोग उत्पन्न होते है | इन बीमारियों का प्रकोप बच्चो पर अधिक दिखाई पड़ता है | इसके साथ वसंत ऋतू का तापमान तन के साथ साथ मन को भी प्रभावित करता है | इससे हमारे शरीर में आलस्य उत्पन्न होता है| इसलिए वसंत ऋतू के आगमन में आग जला कर उसकी परिकर्मा करना नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किये गए | हर चौराहे पर जलती हुई होलिकाओ का तापमान जहाँ रोगानुओ को नष्ट करता है वही खेल कूद की अन्य क्रियाए शरीर में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष को दूर करती है | इससे शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है |

होली के रंगों का महत्व



अब हम आपको बताते है गुलाल और अबीर का वैज्ञानिक महत्व | रंग, गुलाल और अबीर जब शुध रूप में शरीर पर डाला जाता है तो इसका अनोखा प्रभाव पड़ता है | होली पर ढाक के फूलो से तैयार किया गया रंगीन पानी डालने से शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है | यह पानी और गुलाल हमारे लिए जड़ी बूटियों की तरह कार्य करता है और ऋण आयंस में परिवर्तित हो जाता है| ये ऋण आयंस शरीर में एक क्षारीय वातावरण बनता है | कर्क रोग उत्पन्न करने वाली कोशिकाए भी केवल अम्लीय वातावरण में ही जीवित रह सकते है| ऋण आयंस कोशिकाओ और उत्तको में ऑक्सीजन के वितरण को सक्रीय करता है | इससे हमारे शरीर में ऊर्जा बढती है | इसी लिए बड़े बड़े हॉस्पिटल के ऑपरेशन कक्ष में भी ऋण आयंस जनरेटर लगा होता है | शिशिर ऋतू में तापमान कम होने से शरीर में रागानुओ की संख्या बढ़ जाती है, परन्तु वसंत ऋतू की आगमन में जब होलिका जलाई जाती है तब उसके तापमान से पर्यावरण और शरीर के सारे रोगाणु मर जाते है | इस तरह होली का त्यौहार शरीर और पर्यावरण दोनों को विशुध करता है | पश्चिमी डाक्टारो का भी यही मानना है की शरीर के लिए रंगों का एक महतवपूर्ण स्थान है| रंगों से हमारे शरीर और मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ते है |

तो दोस्तों आपको हमारी ये पोस्ट कैसी लगी हमे कमेंट करके जरुर बताये और हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करना न भूले तब तक के लिए नमस्कार |

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