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द्रविड़ लोगों का इतिहास


नमस्कार दोस्तों, हमारा आर्यावर्त के इस ज्ञानवर्धक लेख में आप सभी का स्वागत है, इस लेख में आप जानेगे की असल में द्रविड़ कौन थे और वो कहाँ से आये थे?
तो आईये प्रारंभ करते है |

कौन है द्रविड़



मित्रो, द्रविड़ शब्द दक्षिण भारत से संबंधित शब्द है | स्कन्दपुराण के अनुसार विन्ध्याचल से दक्षिण भारत का समग्र भूभाग 'पंचद्रविड' कहलाता है और प्राचीन भारत के इतिहास मे विन्ध्याचल की उत्पत्ति से ही वैदिक ब्राह्मण दो तरफ बट गये | उत्तर में औत्तरीयपथ के अनुयायी 'पंचगौड' और दक्षिण में दाक्षिणात्यपथ के अनुयायी 'पंचद्रविड'। पंचगौड में - गौड, सारस्वत, कान्यकुब्ज, मैथिल और औत्कल हैं। उसी प्रकार पंचद्रविड मे- द्रविड, कार्णाटक, तैलंग, महाराष्ट्र और गौर्जर हैं। भारत के सभी ब्राह्मण इन्ही दस वर्गों में आते हैं।

असल में द्रविड़ शब्द का प्रयोग पहली बार आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था | जब बोद्ध धर्म अपने वर्चस्व पर था तब शंकराचार्य ने बोद्ध धर्म के विद्वानों के साथ शाश्त्रार्थ करना प्रारंभ किया, ताकि सनातन धर्मियों को फिर से एक किया जा सके और इस आन्दोलन के दौरान जब शंकराचार्य एक बार बिहार में बोद्ध धर्म के विद्वान मंदन मिश्रा के घर शाशत्रार्थ के लिए पहुचे तो मंदन मिशा की पत्नी के पूछने पर शंकराचार्य ने अपने परिचय में खुद को द्रविड़ शिशु बताया था | तब मंदन मिश्रा की पत्नी ने इस पर आपत्ति जताते हुए उनसे इस शब्द का अर्थ पुछा था, इस पर शंकराचार्य ने उत्तर दिया की द्रविड़ शब्द दो शब्दों त्र और विद से मिलकर बना हुआ शब्द है, त्र का अर्थ है तीन और विद का अर्थ है समुंदरी तट और दोनों शब्द की संधि करने पर बनता है द्रविड़ | यह एक शेत्रिय शब्द है परन्तु कपटी अंग्रेजो ने इसे बड़ी ही चालाकी के साथ एक नस्लीय शब्द बना दिया था | अंग्रेजो ने कहा की आर्य लोग विदेशो से आये और द्रविड़ो पर हमला करके उन्हें खदेड़ दिया, और इसी आधार पर उन्होंने दक्षिण भारतीय लोगो से कहा की वो आर्य लोगो का विरोध करे | दक्षिण भारत के अधिकतर प्रान्तों और रज्यो ने अंग्रेजो की बात नहीं मानी लेकिन तमिलनाडु के कुछ लोग इन धूर्त अंग्रेजो के चंगुल में फस गए और इस तरह द्रविड़ आन्दोलन की शुरुआत हुई | द्रविड़ आन्दोलन के बारे में हम आपको अगली विडियो में बताएँगे | आइये अब जानते है की कैसे अंगेजो द्वारा रची गयी थ्योरी गलत है और अंग्रेजो ने ये चालाकी क्यों की |

अंग्रेजो ने ये कैसे किया?

मित्रो ये सब अंग्रेजो हमारे ही देश के कुछ लोगो के साथ मिल कर किया | हमारे देश के कुछ बुद्धिजीवी इतिहासकारों ने आर्य शब्द की परिभाषा ही बदल दी थी उन्होंने अर्यो को सभी के सामने एक जाती की तरह प्रदर्शित किया, जबकि आर्य कौन थे और कहाँ से आये थे ये आप हमारी पहले की विडियो में जान ही चुके है| इसके आलावा, वैदिक इंडेक्स के लेखको ने तो वेदों की ही गलत व्याख्या कर दी, इन्होने गलत सन्दर्भ के जरिये आर्य और द्रविड़ो के युध की परिकल्पना की थी | वास्तव में, वेदों में युद्ध की व्याख्या तो मिली है लेकिन ये मानवीय नहीं प्राक्रतिक युध है, जैसे इंद्र और वत का युध | इंद्र बिजली का प्रतीक है जबकि वत मेघ का प्रतीक है, इन दोनों का परस्पर संघर्ष प्राकर्तिक युध जैसा ही है | वेदों में इन प्राक्रतिक युध को मानवीय उपमा दी गयी है | 

नवीनतम स्त्रोत्र 

अमेरिका में हार्वर्ड के विशेषज्ञों और भारत के विश्लेषकों ने भारत की प्राचीन जनसंख्या के जीनों के अध्ययन के बाद पाया कि सभी भारतीयों के बीच एक अनुवांशिक संबंध है। और इस शोध से जुड़े सीसीएमबी अर्थात सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी यानि कोशिका और आणविक जीवविज्ञान केंद्र के पूर्व निदेशक और इस अध्ययन के सह-लेखक लालजी सिंह ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया था कि शोध के नतीजे के बाद इतिहास को दोबारा लिखने की जरूरत पड़ सकती है। इस शोध के बाद उत्तर और दक्षिण भारतीयों के बीच कोई अंतर नहीं रहा है।

ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यरत गवर्नर एल्फिनस्टोन ने 1841 में अपनी किताब हिस्ट्री ऑफ़ india में लिखा कि वेदों में और मनुस्म्रती में ये कहीं नहीं लिखा है की आर्य बाहर से आये थे | आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद और भीम राव आंबेडकर ने भी कहा है की संस्क्रत के किसी भी ग्रन्थ में ये नहीं लिखा है की आर्य ईरान से आये थे|

सीसीएमबी के वरिष्ठ विश्लेषक कुमार थंगरंजन का अपने शोध में मानना है कि आर्य और द्रविड़ सिद्धांतों के पीछे कोई सचाई नहीं है। इस शोध में भारत के 13 राज्यों के 25 विभिन्न जाति-समूहों से लिए गए 132 व्यक्तियों के जीनों में मिले 5,00,000 आनुवांशिक मार्करों का विश्लेषण किया गया। इस शोध के लिए चुने गए लोगो को अलग अलग भाषा परिवार और आदिवासी समूहों से लिया गया था |इन लोगो के बीच साझे आनुवांशिक संबंधों से साबित होता है कि भारतीय समाज की संरचना में जातियों की उत्पत्ति जनजातियों और आदिवासी समूहों से हुई थी। जातियों और कबीलों अथवा आदिवासियों के बीच अंतर नहीं किया जा सकता क्योंकि उनके बीच के जीनों की समानता यह बताती है कि दोनों अलग नहीं थे।

अंग्रेजो ने ये क्यों किया?

अंग्रेजो ने ये सब भारत की संस्कृतिक एकता को तोड़ने के लिए किया था | अग्रेजो के सामने भारत की संस्कृतिक एकता बहुत बड़ा खतरा बन चुकी थी और अंग्रेज भारतीय इतिहास को पूरी तरह से समाप्त करना चाहते थे किन्तु भारत की संस्कृतिक विरासत अंग्रेजो के सामने दीवार बनकर खड़ी हुई थी | आर्यावर्त की सभ्यता के सामने दुनिया की सभी सभ्यताए बोनी साबित हो रही थी और अंग्रेज इस चमकती हुई विरासत को खत्म करना चाहते थे|

अंग्रेजो ने आजादी से पहले आर्यावर्त के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र में रहने वाले लोगो को अलग करने के लिए आर्यन और द्रविड़ थ्योरी गढ़ी क्योकि आजादी पाने के लिए अर्यावर्ती एक हो रहे थे| इस थ्योरी में अंग्रेजो ने कहा कि आर्य बाहर से आये थे, और द्रविड़ो को उन्होंने अपना दास बनाया | ये थ्योरी बहुत ही शातिराना तरीके से गढ़ी गयी थी | अब ये थ्योरी एक बार फिर से चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योकि फिर से भारत की संस्कृति पूरी दुनिया को आकर्षित कर रही है|

भारतीय संस्कृति के विरुध धर्मयुद्ध तेज हो गया है, ऐसे में हमे इन सभी षड्यन्त्रो का पर्दाफाश करना होगा | देश और दुनिया को बताना होगा की हम क्या है और क्यों हमे सर्वश्रेष्ठ माना जाता था | और इसीलिए अंग्रेजो ने आजादी से पहले आर्यावर्त के उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्र में रहने वाले लोगो को अलग करने के लिए आर्यन और द्रविड़ थ्योरी गढ़ी क्योकि आजादी पाने के लिए अर्यावर्ती एक हो रहे थे|

तो दोस्तों आपको हमारा ये लेख कैसा लगा हमे कमेंट करके जरुर बताये और हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करना न भूले तब तक के लिए नमस्कार |


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