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Maurya Empire in Hindi | मौर्य साम्राज्य का इतिहास | मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी

नमस्कार मित्रो हमारा आर्यावर्त कि इस ज्ञान वर्धक पोस्ट में आप सभी का स्वागत है| मै हूँ आपका मित्र और इस चैनल का सूत्रधार अमित| मित्रो आज इस पोस्ट में आप जानेंगे भारतवर्ष के एक महानतम साम्राज्य मौर्य वंश के बारे में|



मोर्य साम्राज्य 322 और 187 ईसा पूर्व, चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा मगध में स्थापित किया गया था| मगध साम्राज्य कि राजधानी पाटलिपुत्र यानी कि आधुनिक पटना में स्थित थी| यह भारतिय उपमहाद्वीप में मौजूद सबसे बड़ा साम्राज्य था जो 50 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ था| मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने भारत के महान आचार्य चाणक्य कि सहायता से एक सेना खड़ी कि और नन्द साम्राज्य को उखाड़ फेंका| चन्द्रगुप्त ने इसके पश्चात सेल्यूकस को हराया और सिन्धु नदी के पश्चमी क्षेत्र पर अधिग्रहण कर लिया| चन्द्रगुप्त ने सिकंदर द्वारा छोड़े गए क्षेत्रो पर विजय प्राप्त करके अपनी शक्ति का तेजी से विस्तार किया और 317 ईसा पूर्व तक इस साम्राज्य ने उत्तर पश्चमी भारत पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया था|

अपने पूरे वर्चस्व में मौर्य साम्राज्य का विस्तार, उत्तर में हिमालय कि प्राक्रतिक सीमा के साथ, पूर्व में असम तक, पश्चिम में बलूचिस्तान और पुर्वी अफ़ग़ानिस्तान के हिन्दू कुश पर्वत तक था| महाराज बिन्दुसार कि अगुवाई में मौर्य वंश उत्तर के साथ साथ सुदूर दक्षिणी क्षेत्रो तक फैला और रजा अशोक के समय में कलिंग यानी कि आधुनिक उड़ीसा को भी इस साम्राज्य में मिला लिया गया| चन्द्रगुप्त मौर्य और उनके उत्तराधिकारियों कि अगुवाई में मौर्य साम्राज्य में आंतरिक और बाह्य व्यापार बहुत अधिक फला फूला| मौर्य साम्राज्य में ही ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण किया गया, जो एशिया के सबसे लम्बे व्यापार नेटवर्क में से एक था| जो भारतिय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया से जोड़ता था|



आइये अब जानते है कि मगध में साम्राज्य और प्रशाशन कैसा था? छठी से चौथी शताब्दी ई.पू. में मगध सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया| मौर्य साम्राज्य के पांच प्रमुख राजनितिक केंद्र थे, राजधानी पाटलिपुत्र और चार प्रांतीय केंद्र- तक्षशिला, उज्जयनी, तौसिल और स्वर्नगिरी| इन केन्द्रों का चयन बड़े ध्यान से किया गया था| तक्षशिला और उज्जयनी दोनों लम्बी दूरी वाले महतवपूर्ण मार्ग पर स्थित थे जबकि स्वर्नगिरी अर्थात सोने का पहाड़ कर्णाटक में सोने कि खदान के लिए उपयोगी था| अशोक ने अपने साम्राज्य को अखंड बनाये रखने का प्रयास किया| ऐसा उन्होंने धम्म के प्रचार द्वारा भी किया| धम्म के सिधांत बहुत ही सर्वभोमिक थे|

अशोक का मानना था कि धम्म के माध्यम से लोगो का जीवन इस संसार में और इसके बाद के संसार में अच्छा रहेगा| धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामत्त नाम से विशेष अधिकारियो कि नियुक्ति कि गयी थी| यूनानी राजदूत मेगस्थनीज के अनुसार मौर्य साम्राज्य बड़े ही अनुशाषित सेना और अनेक पदाधिकारियों के कारण बड़े सुसंगठित ढंग से चलता था| साम्राज्य के महान अधिकारियो में से कुछ नदियों कि देख रेख और भूमि मापन का काम करते थे और कुछ प्रमुख नहरो से उपनहरों के लिए छोड़े जाने वाले पानी के मुख्यद्वार का निरिक्षण करते थे ताकि हर स्थान पर पानी कि समान पूर्ती हो सके|

एक युवा राजकुमार के रूप में, अशोक शानदार सेनापति था, जिसने उज्जैन और तक्षशिला में विद्रोह को कुचल दिया था। सम्राट के रूप में वह महत्वाकांक्षी और आक्रामक था| लेकिन कलिंग की विजय उनके जीवन की महत्वपूर्ण घटना साबित हुई। इस युद्ध में 1 लाख से अधिक सैनिक और नागरिक मारे गए थे| जब अशोक ने यह तबाही देखि तो उन्हें पछतावा होने लगा और इसके बाद उन्होंने बोध धर्म अपना कर आजीवन युद्ध न करने का फैसला लिया| अशोक के बाद 50 सालो तक उनके उत्तराधिकारियों के रूप में अनेक कमजोर राजा आये| अंतिम मौर्य सम्राट ब्र्ह्दर्थ को उसी के सेनापति पुष्यमित्र के द्वारा मार दिया गया| और इसी के साथ मौर्य वंश का अंत हुआ और शुंग वंश कि शुरुआत हुई|

कुछ लोगो के अनुसार रजा अशोक ने एक गुप्त समूह का निर्माण किया था| इस गुप्त समूह में 9 लोगो को शामिल किया गे था, एक 9 लोग बहुत ही अधिक प्रशिक्षित और गुनी थे| इन 9 लोगो को, 9 किताबो कि रक्षा के लिए नियुक्त किया गया था| in 9 किताबो में गुप्त विद्याओ कि विस्तृत जानकारियां थी|

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