आर्य कौन थे कहां से आए | Aryan Kon The in Hindi | When Arya Came to India
नमस्कार दोस्तों, हमारा आर्यावर्त की इस ज्ञानवर्धक पोस्ट में आप सभी का स्वागत है, इस पोस्ट में आप जानेगे की असल में आर्य कौन है और इन्हें झूठे और मक्कार इतिहासकारों ने विदेशी क्यों बताया?
तो आईये प्रारंभ करते है |
अब आपके मन में ये विचार अवश्य आ रहा होगा कि आर्य कौन है और कहाँ से आये, क्या उनकी भाषा या संस्कृति के कोई और अवसेश भी है? भारत की लोक कहानियो में इन बातो के कोई सबूत नहि मिलते| इन बातो को प्रमाणित करने के लिए भी कोई स्तम्भ, स्मारक या सिक्के भी नहीं मिलते|
आर्यों को विदेशी सर्वप्रथम एक दोगले और कपटी इतिहासकार, मैक्स मूलर ने कहा था| क्योंकि इन पापी अंग्रेजों की यही नीति थी कि भोले भले भारतीयों में फूट डालो और शाशन करो| इसके बाद एक और कपटी अंग्रेज लॉर्ड मेकॉले ने भी आर्यों को विदेशी कहा लेकिन जीवन के अंतिम क्षणों में उसने माना कि आर्य भारतीय महाद्वीप से ही थे|
भारतीय संस्कृति, साहित्य, परपरा से आर्य वे हैं, जो लोग श्रेष्ठ परपरा के धनी हैं। वेद और वैदिक धर्म स्वीकार करते हैं, वे सभी आर्य है। कोई भी आर्य बन सकता है, किसी को आर्य कह सकते हैं। हमारी आर्य परपरा में एक पत्नी अपने पति को आर्य-पुत्र कहकर पुकारती है। निर्लज पाश्चात्य लोगों ने आर्य-द्रविड़ सिद्धान्त की कपोल कल्पना की, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में विभाजन उत्पन्न करना था। आर्य-द्रविड़ का विचार, आर्य भारत में बाहर से आये हैं- यह सिद्धान्त विद्वानों, वैज्ञानिकों की दृष्टि में खण्डित हो चुका है, परन्तु योरोप-अमेरिकी पक्ष इसका पूरा उपयोग इस देश को विभाजित करने में लगा हुआ है। इस षड्यन्त्र को सबसे पहले महर्षि दयानन्द ने समझा था| और उन्होंने अपने ग्रन्थों में इस सिद्धान्त का स्पष्ट रूप से खण्डन किया था।
महर्षि दयानन्द ने लिखा- “आर्यों का बाहर से भारत में आने का, भारतीय साहित्य के किसी भी ग्रन्थ में उल्लेख नहीं मिलता। यदि आर्य बाहर से आकर भारत में बसे होते तो इतने बड़े ऐतिहासिक सन्दर्भ का उल्लेख उनके साहित्य में न हो, यह असभव है।“ किसी देश से आकर बसने की घटना उस समाज में निरन्तर स्मरण की जाती है। अगर कोई आक्रमणकारी किसी देश पर आक्रमण करता है तो यह बात उनके इतिहास में स्पष्ट रूप से झलकती है| परन्तु क्या अरो के बारे में समाज में कथायें मिलती हैं, परपरायें मिलती हैं, पुराने रीति-रिवाज, जीवन शैली के अंश मिलते हैं, क्या आर्यों की कोई परपरा किसी तथाकथित मध्य एशिया या किसी अन्य देश में मिलती है? क्या आर्यों की भाषा मौलिक रूप से किसी दूसरे देश में बोली जाती है या इतिहास में पाई जाती है? इतना ही नहीं, इतनी बड़ी जाति का संक्रमण एक दिन में तो नहीं हो सकता, उसके उस स्थान से चलकर यहाँ तक पहुँचने के मार्ग में उनके चिह्न, अवशेष तो मिलने चाहिए।
यदि बाहर से चलकर भारत को आर्यों ने जीता था, तो क्या बीच के देश उन्होंने बिना जीते ही छोड़ दिये थे? यदि जीते थे तो आज वहाँ उनका अस्तित्व क्यों नहीं है, वहाँ उनका राज्य क्यों नहीं है? आर्यों के इतिहास, संस्कृति के अवशेष वहाँ क्यों नहीं पाये जाते?
जिन्हें हम द्रविड़, दलित, शूद्र मान रहे हैं, वे किस अर्थ में आर्यों से भिन्न हैं? भारतीय हिन्दू समाज के सवर्ण-असवर्ण दोनों ही अंग हैं। दोनों के गोत्र एक से हैं, परपरायें, खान-पान, वस्त्र, आभूषण, पहनावा- सभी कुछ एक जैसा है। सभी के देवी-देवता, धर्मग्रन्थ, उपास्य, उपासना पद्धति- सब एक जैसे हैं। सभी राम, हनुमान, शिव, गणेश आदि की पूजा-उपासना करते हैं। व्रत, उपवास, संस्कार साी कुछ पूरे समाज का एक दूसरे से मिलता है। सपन्नता-निर्धनता के आधार पर सभी में परस्पर स्वामी-सेवक सबन्ध पाया जाता है, अतः समग्र रूप में समाज एक है। यदि कोई अन्तर है तो विद्या या अविद्या का, सपन्नता या निर्धनता का, अन्याय या न्याय का अन्तर और परिणाम देखने में आता है।
यह सभी समाजों में स्वाभाविक रूप से देखा जा सकता है। इसका मूल कारण भारतीय समाज का जन्मना जाति स्वीकार करने का दुष्परिणाम है। यह अज्ञान, अविद्या, पाखण्ड, शोषण, सवर्ण-असवर्ण, जन्मना जाति, ऊँच-नीच, छुआछूत के परिणामस्वरूप, जिसका पाश्चात्य लोग लाभ उठाकर समाज में विरोध और द्वेष उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं। अंग्रेजों ने पं. भगवद्दत्त के पास भी अपना सन्देश वाहक भेजा था- वे अपनी पुस्तकों में लिख दें कि जाट लोग इस देश में बाहर से आर्य के रूप में आये हैं, परन्तु पण्डित जी ने दृढ़ता से इसका निषेध कर दिया। जहाँ आर्य विद्वानों ने निषेध किया, वहीं पर धन व प्रतिष्ठा के लोभी लोगों ने अंग्रेजों की इच्छानुसार लेखन भी किया।
इस देश में आने वाले पहले लोग आर्य ही हैं और उन्होंने ही इस देश का नाम आर्यावर्त रखा। इस देश के बदले गये बाद के नामों की चर्चा तो मिलती है, परन्तु आर्यावर्त या ब्रह्मवर्त से पहले के किसी भी नाम की चर्चा विश्व इतिहास में नहीं मिलती, अतः यह कहना कि भारत में आर्य बाहर से आये- यह पाखण्डपूर्ण कथन है। भारत में आर्य बाहर से आये- यह कहना वदतो व्याघात अर्थात् परस्पर विरोधी है, क्योंकि इस देश का भारत नामकरण भी आर्यों का है, फिर भारत में आर्यों का बाहर से आना कैसे बनेगा।
इस कार्य को करने वाले संगठन भारत में बामसेफ और मूल निवासी परिषद् है। पाश्चात्य लोगों ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, योरोप के अनेक विश्वविद्यालयों में इस मूलनिवासी लोगों के इतिहास के अनुसन्धान के लिए अनेक शोधपीठ भी स्थापित किये हैं, जिनमें डी.एन.ए तक मूल निवासियों का आर्यों से पृथक् होने की बात कही गई है। ये संगठन ज्योतिबा फूले और डॉ. अबेड़कर के नाम से लोगों को हिन्दू समाज से अलग करने का प्रयास करते हैं। दलित प्रकाशन के नाम से प्रकाशित दो सौ से भी अधिक पुस्तकों में यही समझाने का प्रयास किया है कि स्वतन्त्रता संग्राम का दलितों से कुछ लेना-देना नहीं है, दलितों का उद्धार अंग्रेजों ने किया है। डॉ. अबेडकर ने ही उनके लिये कार्य किया है, समाज में सवर्ण कहलाने वाले लोगों ने उनका शोषण किया है। अंग्रेज शासन उनके लिये अच्छा था, स्वतन्त्रता संग्राम तो सवर्णों की अपने अधिकारों की लड़ाई थी
इस कार्य को करने वाली संस्था बामसेफ, जिसका पूरा नाम ऑल इण्डियन बैकवर्ड एंड माइनॉरिटीज एप्लाइज फैडरेशन है, जिसका निर्माण बहुजन समाजवादी पार्टी के संस्थापक कांशीराम और डी.के. खापडे ने अमरीकी सहायता से 1973 में किया था। इसका उद्देश्य आरक्षण का लाभ उठाकर भारतीय समाज में सवर्ण-असवर्ण की खाई को गहरी करना और समाज में विघटन के बीज बोना था। सामाजिक लोगों को अभी तक इसका विशेष परिचय नहीं है। जो परिचित भी हैं, वे इनके कार्य को विशेष महत्त्व नहीं देते, परन्तु खडगे ने संसद में बता दिया, यह विचार समाज में तेजी से घर कर रहा है। समाज और सरकार को इसका निराकरण करने के लिये सक्रिय होना होगा।
अब यह धारणा कि, भारत में आर्य बाहर से आए जानबूझकर कुछ अंग्रेज विद्वानों ने फैलाई थी. यह धारणा इस देश में फैलाने के पीछे उनकी इस देश के वास्तविक भूमीपूत्रों को भ्रम में डाल कर उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई से अपना ध्यान दूसरी तरफ मोड़ना था, ताकि वे इस भारत भूमी पर अपना अधिकार न बता सकें.
आर्य भारत में बाहर से आए’ यह दिखाने के लिए अंग्रेजों ने जानबूझकर यह भ्रम इस देश के बुद्धिजीवियों में फैलाया ताकि यह जन-जन तक पहॅुच जाए. क्योंकि हमारे देश के कुछ विदेशी डीग्रीधारी तथाकथित बुद्धिजीवि यह कार्य मुफ्त में ही कर देंगे, यह अंग्रेजों को अच्छी प्रकार से पता था.
डिएनए विशेषज्ञों ने भी यह माना है कि, पूरे विश्व के लोगों के डीएनए सैम्पल एकत्रीत किए जाए तो उनके सात-आठ प्रकार ही पाए जाऐंगे, इससे अधिक नहीं क्योंकि हमारी प्राचीन धारणा कि सप्त ऋषियों से मानवों के परिवारों के हम वंशज हैं, ‘गोत्र प्रणाली’ इस धारणा को सिद्ध करती हैं. प्राचीन काल से ही भारत से लोग ज्ञानप्रसार, व्यापार और अन्य कारणों से बाहर जाते रहतें हैं. भारत से लोग बाहरी देशों में जाकर बसते हैं, न कि बाहर से भारत में आकर बस गए.
१) आर्यों में कोई गुलाम बनाने का कोई रिवाज़ नही था।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया अरब देशो में ये रिवाज़ बहुत रहा है।
२) आर्य प्रारम्भ से ही कृषि करके शाकाहारी भोजन ग्रहण करते आ रहें है।
समीक्षा - मध्य एशिया में मासांहार का बहुत सेवन होता है जबकि भारत में अधिकतम सभी आर्य या हिंदू लोग शाकाहारी हैं
३) आर्यों ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया
समीक्षा- अधिकतम अपनी सुरक्षा के लिये किया है या फ़िर अधर्मियो और राक्षसों (बुरे लोगो) का संहार करने के लिये और लोगो को अन्याय से बचाने के लिये और शिक्षित करने के लिये किया है। इतिहास साक्षी है अरब देशो ने कितने आक्रमण और लौट-खसोट अकारण ही मचाई है।
४) आर्यों में कभी परदा प्रथा नही रही बल्कि वैदिक काल में स्त्रियाँ स्नातक और भी पढी लिखी होती थी उनका आर्य समाज में अपना काफी आदर्श और उच् स्थान था ( मुगलों के आक्रमण के साथ भारत के काले युग में इसका प्रसार हुआ था)
समीक्षा- जबकि उस समय मध्य एशिया या विश्व के किसी भी देश में स्त्रियों को इतना सम्मान प्राप्त नही था।
५)आर्य लोग शवो का दाह संस्कार या जलाते हैं जबकि विश्व में और बाकी सभी और तरीका अपनाते हैं।
समीक्षा - ना की केवल मध्य एशिया में वरन पूरे विश्व में भारतीयों के अलावा आज भी शवो को जलाया नही जाता।
६) आर्यों की भाषा लिपि बाएं से दायें की ओर है।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया और इरानियो की लिपि दायें से बाईं ओर है
७)आर्यों के अपने लोकतांत्रिक गाँव होते थे कोई राजा मध्य एशिया या मंगोलियो की तरह से नही होता था।
समीक्षा - मध्य एशिया में उस समय इन सब बातो का पता या अनुमान भी नही था|
तो दोस्तों आपको हमारी ये पोस्ट कैसी लगी हमे कमेंट करके जरुर बताये और हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब करना न भूले तब तक के लिए नमस्कार |
तो आईये प्रारंभ करते है |
आर्य कौन थे ?
अब आपके मन में ये विचार अवश्य आ रहा होगा कि आर्य कौन है और कहाँ से आये, क्या उनकी भाषा या संस्कृति के कोई और अवसेश भी है? भारत की लोक कहानियो में इन बातो के कोई सबूत नहि मिलते| इन बातो को प्रमाणित करने के लिए भी कोई स्तम्भ, स्मारक या सिक्के भी नहीं मिलते|
आर्यों को विदेशी सर्वप्रथम एक दोगले और कपटी इतिहासकार, मैक्स मूलर ने कहा था| क्योंकि इन पापी अंग्रेजों की यही नीति थी कि भोले भले भारतीयों में फूट डालो और शाशन करो| इसके बाद एक और कपटी अंग्रेज लॉर्ड मेकॉले ने भी आर्यों को विदेशी कहा लेकिन जीवन के अंतिम क्षणों में उसने माना कि आर्य भारतीय महाद्वीप से ही थे|
भारतीय संस्कृति, साहित्य, परपरा से आर्य वे हैं, जो लोग श्रेष्ठ परपरा के धनी हैं। वेद और वैदिक धर्म स्वीकार करते हैं, वे सभी आर्य है। कोई भी आर्य बन सकता है, किसी को आर्य कह सकते हैं। हमारी आर्य परपरा में एक पत्नी अपने पति को आर्य-पुत्र कहकर पुकारती है। निर्लज पाश्चात्य लोगों ने आर्य-द्रविड़ सिद्धान्त की कपोल कल्पना की, जिसका उद्देश्य भारतीय समाज में विभाजन उत्पन्न करना था। आर्य-द्रविड़ का विचार, आर्य भारत में बाहर से आये हैं- यह सिद्धान्त विद्वानों, वैज्ञानिकों की दृष्टि में खण्डित हो चुका है, परन्तु योरोप-अमेरिकी पक्ष इसका पूरा उपयोग इस देश को विभाजित करने में लगा हुआ है। इस षड्यन्त्र को सबसे पहले महर्षि दयानन्द ने समझा था| और उन्होंने अपने ग्रन्थों में इस सिद्धान्त का स्पष्ट रूप से खण्डन किया था।
महर्षि दयानन्द ने लिखा- “आर्यों का बाहर से भारत में आने का, भारतीय साहित्य के किसी भी ग्रन्थ में उल्लेख नहीं मिलता। यदि आर्य बाहर से आकर भारत में बसे होते तो इतने बड़े ऐतिहासिक सन्दर्भ का उल्लेख उनके साहित्य में न हो, यह असभव है।“ किसी देश से आकर बसने की घटना उस समाज में निरन्तर स्मरण की जाती है। अगर कोई आक्रमणकारी किसी देश पर आक्रमण करता है तो यह बात उनके इतिहास में स्पष्ट रूप से झलकती है| परन्तु क्या अरो के बारे में समाज में कथायें मिलती हैं, परपरायें मिलती हैं, पुराने रीति-रिवाज, जीवन शैली के अंश मिलते हैं, क्या आर्यों की कोई परपरा किसी तथाकथित मध्य एशिया या किसी अन्य देश में मिलती है? क्या आर्यों की भाषा मौलिक रूप से किसी दूसरे देश में बोली जाती है या इतिहास में पाई जाती है? इतना ही नहीं, इतनी बड़ी जाति का संक्रमण एक दिन में तो नहीं हो सकता, उसके उस स्थान से चलकर यहाँ तक पहुँचने के मार्ग में उनके चिह्न, अवशेष तो मिलने चाहिए।
क्या आर्य बाहर से भारत में आये थे ?
यदि बाहर से चलकर भारत को आर्यों ने जीता था, तो क्या बीच के देश उन्होंने बिना जीते ही छोड़ दिये थे? यदि जीते थे तो आज वहाँ उनका अस्तित्व क्यों नहीं है, वहाँ उनका राज्य क्यों नहीं है? आर्यों के इतिहास, संस्कृति के अवशेष वहाँ क्यों नहीं पाये जाते?
जिन्हें हम द्रविड़, दलित, शूद्र मान रहे हैं, वे किस अर्थ में आर्यों से भिन्न हैं? भारतीय हिन्दू समाज के सवर्ण-असवर्ण दोनों ही अंग हैं। दोनों के गोत्र एक से हैं, परपरायें, खान-पान, वस्त्र, आभूषण, पहनावा- सभी कुछ एक जैसा है। सभी के देवी-देवता, धर्मग्रन्थ, उपास्य, उपासना पद्धति- सब एक जैसे हैं। सभी राम, हनुमान, शिव, गणेश आदि की पूजा-उपासना करते हैं। व्रत, उपवास, संस्कार साी कुछ पूरे समाज का एक दूसरे से मिलता है। सपन्नता-निर्धनता के आधार पर सभी में परस्पर स्वामी-सेवक सबन्ध पाया जाता है, अतः समग्र रूप में समाज एक है। यदि कोई अन्तर है तो विद्या या अविद्या का, सपन्नता या निर्धनता का, अन्याय या न्याय का अन्तर और परिणाम देखने में आता है।
यह सभी समाजों में स्वाभाविक रूप से देखा जा सकता है। इसका मूल कारण भारतीय समाज का जन्मना जाति स्वीकार करने का दुष्परिणाम है। यह अज्ञान, अविद्या, पाखण्ड, शोषण, सवर्ण-असवर्ण, जन्मना जाति, ऊँच-नीच, छुआछूत के परिणामस्वरूप, जिसका पाश्चात्य लोग लाभ उठाकर समाज में विरोध और द्वेष उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं। अंग्रेजों ने पं. भगवद्दत्त के पास भी अपना सन्देश वाहक भेजा था- वे अपनी पुस्तकों में लिख दें कि जाट लोग इस देश में बाहर से आर्य के रूप में आये हैं, परन्तु पण्डित जी ने दृढ़ता से इसका निषेध कर दिया। जहाँ आर्य विद्वानों ने निषेध किया, वहीं पर धन व प्रतिष्ठा के लोभी लोगों ने अंग्रेजों की इच्छानुसार लेखन भी किया।
आर्य भारत क्यों आये ?
इस देश में आने वाले पहले लोग आर्य ही हैं और उन्होंने ही इस देश का नाम आर्यावर्त रखा। इस देश के बदले गये बाद के नामों की चर्चा तो मिलती है, परन्तु आर्यावर्त या ब्रह्मवर्त से पहले के किसी भी नाम की चर्चा विश्व इतिहास में नहीं मिलती, अतः यह कहना कि भारत में आर्य बाहर से आये- यह पाखण्डपूर्ण कथन है। भारत में आर्य बाहर से आये- यह कहना वदतो व्याघात अर्थात् परस्पर विरोधी है, क्योंकि इस देश का भारत नामकरण भी आर्यों का है, फिर भारत में आर्यों का बाहर से आना कैसे बनेगा।
इस कार्य को करने वाले संगठन भारत में बामसेफ और मूल निवासी परिषद् है। पाश्चात्य लोगों ने ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, योरोप के अनेक विश्वविद्यालयों में इस मूलनिवासी लोगों के इतिहास के अनुसन्धान के लिए अनेक शोधपीठ भी स्थापित किये हैं, जिनमें डी.एन.ए तक मूल निवासियों का आर्यों से पृथक् होने की बात कही गई है। ये संगठन ज्योतिबा फूले और डॉ. अबेड़कर के नाम से लोगों को हिन्दू समाज से अलग करने का प्रयास करते हैं। दलित प्रकाशन के नाम से प्रकाशित दो सौ से भी अधिक पुस्तकों में यही समझाने का प्रयास किया है कि स्वतन्त्रता संग्राम का दलितों से कुछ लेना-देना नहीं है, दलितों का उद्धार अंग्रेजों ने किया है। डॉ. अबेडकर ने ही उनके लिये कार्य किया है, समाज में सवर्ण कहलाने वाले लोगों ने उनका शोषण किया है। अंग्रेज शासन उनके लिये अच्छा था, स्वतन्त्रता संग्राम तो सवर्णों की अपने अधिकारों की लड़ाई थी
इस कार्य को करने वाली संस्था बामसेफ, जिसका पूरा नाम ऑल इण्डियन बैकवर्ड एंड माइनॉरिटीज एप्लाइज फैडरेशन है, जिसका निर्माण बहुजन समाजवादी पार्टी के संस्थापक कांशीराम और डी.के. खापडे ने अमरीकी सहायता से 1973 में किया था। इसका उद्देश्य आरक्षण का लाभ उठाकर भारतीय समाज में सवर्ण-असवर्ण की खाई को गहरी करना और समाज में विघटन के बीज बोना था। सामाजिक लोगों को अभी तक इसका विशेष परिचय नहीं है। जो परिचित भी हैं, वे इनके कार्य को विशेष महत्त्व नहीं देते, परन्तु खडगे ने संसद में बता दिया, यह विचार समाज में तेजी से घर कर रहा है। समाज और सरकार को इसका निराकरण करने के लिये सक्रिय होना होगा।
असल में आर्य कोन है
अब यह धारणा कि, भारत में आर्य बाहर से आए जानबूझकर कुछ अंग्रेज विद्वानों ने फैलाई थी. यह धारणा इस देश में फैलाने के पीछे उनकी इस देश के वास्तविक भूमीपूत्रों को भ्रम में डाल कर उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई से अपना ध्यान दूसरी तरफ मोड़ना था, ताकि वे इस भारत भूमी पर अपना अधिकार न बता सकें.
आर्य भारत में बाहर से आए’ यह दिखाने के लिए अंग्रेजों ने जानबूझकर यह भ्रम इस देश के बुद्धिजीवियों में फैलाया ताकि यह जन-जन तक पहॅुच जाए. क्योंकि हमारे देश के कुछ विदेशी डीग्रीधारी तथाकथित बुद्धिजीवि यह कार्य मुफ्त में ही कर देंगे, यह अंग्रेजों को अच्छी प्रकार से पता था.
डिएनए विशेषज्ञों ने भी यह माना है कि, पूरे विश्व के लोगों के डीएनए सैम्पल एकत्रीत किए जाए तो उनके सात-आठ प्रकार ही पाए जाऐंगे, इससे अधिक नहीं क्योंकि हमारी प्राचीन धारणा कि सप्त ऋषियों से मानवों के परिवारों के हम वंशज हैं, ‘गोत्र प्रणाली’ इस धारणा को सिद्ध करती हैं. प्राचीन काल से ही भारत से लोग ज्ञानप्रसार, व्यापार और अन्य कारणों से बाहर जाते रहतें हैं. भारत से लोग बाहरी देशों में जाकर बसते हैं, न कि बाहर से भारत में आकर बस गए.
अब देखते है की आर्य किसी भी अर्थ में भारत के लोगो से भिन्न नहीं है क्युकी वो खुद ही भारत के ही है|
१) आर्यों में कोई गुलाम बनाने का कोई रिवाज़ नही था।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया अरब देशो में ये रिवाज़ बहुत रहा है।
२) आर्य प्रारम्भ से ही कृषि करके शाकाहारी भोजन ग्रहण करते आ रहें है।
समीक्षा - मध्य एशिया में मासांहार का बहुत सेवन होता है जबकि भारत में अधिकतम सभी आर्य या हिंदू लोग शाकाहारी हैं
३) आर्यों ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया
समीक्षा- अधिकतम अपनी सुरक्षा के लिये किया है या फ़िर अधर्मियो और राक्षसों (बुरे लोगो) का संहार करने के लिये और लोगो को अन्याय से बचाने के लिये और शिक्षित करने के लिये किया है। इतिहास साक्षी है अरब देशो ने कितने आक्रमण और लौट-खसोट अकारण ही मचाई है।
४) आर्यों में कभी परदा प्रथा नही रही बल्कि वैदिक काल में स्त्रियाँ स्नातक और भी पढी लिखी होती थी उनका आर्य समाज में अपना काफी आदर्श और उच् स्थान था ( मुगलों के आक्रमण के साथ भारत के काले युग में इसका प्रसार हुआ था)
समीक्षा- जबकि उस समय मध्य एशिया या विश्व के किसी भी देश में स्त्रियों को इतना सम्मान प्राप्त नही था।
५)आर्य लोग शवो का दाह संस्कार या जलाते हैं जबकि विश्व में और बाकी सभी और तरीका अपनाते हैं।
समीक्षा - ना की केवल मध्य एशिया में वरन पूरे विश्व में भारतीयों के अलावा आज भी शवो को जलाया नही जाता।
६) आर्यों की भाषा लिपि बाएं से दायें की ओर है।
समीक्षा - जबकि मध्य एशिया और इरानियो की लिपि दायें से बाईं ओर है
७)आर्यों के अपने लोकतांत्रिक गाँव होते थे कोई राजा मध्य एशिया या मंगोलियो की तरह से नही होता था।
समीक्षा - मध्य एशिया में उस समय इन सब बातो का पता या अनुमान भी नही था|
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